बुधवार 2 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है. चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है. देवी के इस स्वरूप की अष्ट भुजाएं हैं, जिसमें उन्होंने कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जप माला धारण किए हुए हैं. मां का रूप दिव्य और अलौकिक माना जाता है. वहीं, मां कूष्मांडा शेर पर सवार होती हैं. मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के चौथे दिन कूष्मांडा माता की पूजा-अर्चना करने से भक्तों के मान-सम्मान में वृद्धि होती है और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.

पूजा विधि : सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और साफ कपड़े पहनें. मंदिर को गंगाजल से शुद्ध कर पूजा स्थान पर कूष्मांडा माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. शुद्ध घी का दीपक जलाएं.इसके बाद मां को कुमकुम और हल्दी का तिलक करें. कूष्मांडा माता को लाल रंग का कपड़ा या चादर चढ़ाएं. मां को भोग लगाकर उनके मंत्र का जाप करें. इसके बाद, मां के चरणों में पुष्प अर्पित कर आरती गाएं.
भोग एवं शुभ रंग : मां कूष्मांडा को खासतौर पर मालपुए का भोग बेहद प्रिय है. ऐसे में माता कूष्मांडा को पूजा के बाद मालपुए का भोग लगाया जाता है. इससे अलग मां को दही और हलवे का भोग भी लगाया जाता है. चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन का शुभ रंग नारंगी या गहरा नीला होता है.
कथा : पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय ऐसा आया था जब ब्रह्मा, विष्णु और शंकर सृष्टि की रचना में असमर्थ थे. पूरी सृष्टि में केवल अंधकार था, कोई जीवन नहीं था और न ही कोई शक्ति काम कर रही थी. सभी देवताओं ने इस कठिन समस्या का समाधान ढूंढने के लिए मां दुर्गा की ओर रुख किया. तब मां दुर्गा ने अपने कूष्मांडा रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने प्रकट होकर सृष्टि का निर्माण किया. ‘कूष्मांडा’ शब्द का अर्थ होता है ‘कूष्म’ (तरंग) और ‘आंड़ा’ (अंडा), अर्थात वह देवी जो ब्रह्मांड के अंडे के रूप में प्रकट होकर सृष्टि की रचना करती हैं. मां कूष्मांडा ने अपनी शक्ति से इस ब्रह्मांड का निर्माण किया. ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के कारण उन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है.